गुरुवार, 2 जुलाई 2015

श्रवण साहू

उसे अपना बनाना तो
कल्पना ही रह गयी,
उनका साथ निभाना तो
कल्पना ही रह गयी,
अब उसे पाना तो
कल्पना ही रह गयी,
वो प्रेम का जमाना तो
कल्पना ही रह गयी,
वो खुशी का पल तो
कल्पना ही रह गयी,
वो खट्टे मिठे हलचल तो
कल्पना ही रह गयी,
चन्द पल भी मुस्कुराना तो
कल्पना ही रह गयी,
एक क्षण भी बिताना तो
कल्पना ही रह गयी,
वो प्रेम गीत भी गुनगुना तो,
कल्पना ही रह गयी,
वो मन भर के खाना तो
कल्पना ही रह गयी

हर चीज कल्पना रह गयी मेरे दोस्त,
क्योंकि

कल्पना के बिना तो,
मेरे पूरी जिन्दगी ही
कल्पना ही रह गयी!!!
             

साथ ही एक शेर,

मन कुण्ठित हो चला है आज,
मेरे सनम् का दीदार हो जाये,
जो अदा उनमे पहले थी,
काश आज वही किरदार हो जाये!!
                     - श्रवण साहू

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