बरेण्डी ले कईसे झांकत हे,
देखत हे टूकुर-टूकुर।
कब ये मन खेत जाही ता,
पिंहू दूध चुपूर-चुपूर।
देखत हे नानकुन नोनी हा,
करत हावे मुटूर-मुटूर।
भाग ना लईका बाहर कोति,
मत कर लुटुर-लुटूर।
तोर जावत देरी हे मोला,
रोटी खांहू खुटूर-खुटूर।
अब नोनी के जाय उपर,
आगे दू कुकूर-कुकूर।
खिसयावय मन मा बिलई,
करे लागे लुहूर-तुहूर।
कोनो किसिम कुकूर भागिस
हांसे बिलई मुसूर-मुसूर।
सफल होय बर काम मा अपन,
रेंगे बिलई चुटुर-चुटूर।
ऐति देखे अऊ ओति देखें,
चलत हे सुटूर-सुटूर।
हरु हरु पांव मढ़ावत घुशरे,
कुरिया मा खुशुर-खुशुर।
सबो जिनिस तारा मा बंद हे,
होगे बिलई के छुटुर-पुटूर।
बिगड़य झन मोर काम हा,
लागत हे अब धुकूर-धुकूर।
दुध टंगाय हे छिका मा,बाय होगे,
जीव चुरत हे चुहूर-चूहर।
करलागे बिलई के मन हा,
देखत हे अब टूकुर-टूकुर।
मरत हे लांघन बिलई बिचारी,
पसिया ला पिये गुटूर-गुटूर।
✏ श्रवण साहू
गांव-बरगा थानखम्हरिया
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