एक गम....
सजा-ए-मौत उसी रोज मिल गया था,
जिस दिन वो मुझसे मूहं मोड़ गयी।
सफर-ए-ईश्क के उलझी हुई डगर में,
अकेला ही जब मुझे छोड़ गयी।
जानती भी तो थी, कितना चाहता हूँ मैं,
मगर ऐसे ही क्यों दिल तोड़ गयी।
मगर एक आस...
जख्म दिया तूमने,मूझे कबुल है,
मगर मरहम तो लगाती जा।
आशियाना भी उजड़ गया मेरा,
थोड़ा ही सहीं, बसाती जा।
सुख गयी मेरे जीवन की बगिया,
रोती कलियों को सजाती जा।
हम बिछड़ गये, गम तो है मगर,
खुशी के लिए मुस्कुराती जा।
- श्रवण साहू
गांव-बरगा, थानखम्हरिया
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