शनिवार, 1 अगस्त 2015

हाय अब कईसन सावन

।।। विरह गीत ।।।

हाय अब कईसन सावन। 
मन लगे बिरहा गीत गावन। 
सबके चेत हरागे अब तो, 
रोवत हे भुईयां पावन, 
                        हाय अब.....

चमकत बिजली के डर कहां, 
घुमरत बदरा के डर कहां, 
गरजत घटा के डर कहां, 
छलकत नरवा के डर कहां, 
नईहे सौंधी खुशबु के आवन। 
                       हाय अब....... 
रोवत हे कईसे अमरईया, 
सुख्खा आगी कस पूरवईया, 
कईसे करही खेती कमईया, 
भुलागे गीत ला अब चिरईया, 
मन मा लागे हे डर्रावन। 
                       हाय अब.....
जेठ बईसाख जस घाम छागे,
झिरिया,नरवा,तरिया अटागे, 
झुमरत फसल कईसे अईलागे, 
सबो परानी के मन करलागे,
लागत नईहे दुनिया मनभावन। 
                        हाय अब....
हे उपर वाले!का करन बता ना,
कलपत मनखे ला झन सता ना 
परान बचाये के रस्ता सुझा ना, 
मन मा लगे आगी ला बुझा ना,
प्रभु करदे गा बरखा के आवन। 
                       हाय अब..... 
रचना-श्रवण साहू 
गांव-बरगा थानखम्हरिया 
मोबाइल- 08085104647

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