बुधवार, 12 अगस्त 2015

संतो के निंदक सुनो!


चन्द लाईन उनके लिये जो बिना सत्य को जाने ही  अपनी प्रशंसा के लिये,हाई लाईट होने के लिये, संतो और गुरू पर किचड़ उछालते हूऐ अनेक प्रकार के पंक्ति गढ़ते रहते हैं।
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संतो की निन्दा करने वाले,
हँसकर कभी न जी पाया है।
जाम अनेक पीये होंगे मगर,
हरिनाम रस न पी पाया है।।

आयु,वंश,सम्मान मिट गये,
जिसने गुरु पे दाग लगाया है।
खुब हंसते होंगे दिनभर,मगर
रात में कभी न चैन पाया है।

राम, कृष्ण, दिनेश महेश भी,
संतो अरु गुरू का गुण गायें है।
विवेकानंद, कबीरा, नानक जैसे,
गुरू चरणों मे शीश झुकायें है।

गुरु के ही कृपापात्र होकर ही,
ध्रुव जैसे आसमां मे जगमगाते हैं।
इतिहास भी साक्षी गुरु पक्ष में,
डाकु भी विद्वान हो जाते हैं।

दाग तो निगुरा लगा ही दिये थे,
कृष्ण राम जैसे भगवानों पर।
पालनहारी स्वामी थे जगत् का,
ग्रहण लगे उनके भी सम्मानों पर।

निश्चित ही यह कलयुग का
एक परिचय और दुष्प्रभाव है।
पिटते सज्जन सत्पुरुष यहां,
शकुनी जैसो का चलता दाव है।
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काॅपी राईट @श्रवण साहू, बरगा
दिनांक- 09-08-2015

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