।।मोर गांव मा रोज मेला।।
छत्तीसगढ़ के कोरा मा बसे,
मोर गांव मा रोज हे मेला।
आठो काल बारो महिना,
बिहनिया ले संझा के बेला।
कुकरा बांसत होत बिहनिया,
डबर रोटी वाले आथे।
लईका,जवान अउ सियनहा,
चाय मा बोर बोर खाथे।
ओकर पाछु चिल्लावत आथे,
कोचनीन हा धरे मोटरा।
आनी बानी साग भाजी लाथे,
पताल,रमकेलिया,बटरा।
ऊवत सुरूज पांव मढ़ाथे,
केंवटिन हा बोहे टुकेना।
भोक्का लाड़ु,लाई,मुर्रा
बेंचत चना अऊ फुटेना।
साईकिल के घंटी बजावत,
अब फुग्गा वाले हा आगे।
केंश के बदली पिन अउ फोटू,
लईका मन सुनते भागे।
होगे बेरा कपड़ा वाले के,
चढ़ के स्कूटर मा आय।
कुरथा पेंट धोती पजामा
साड़ी हा मन ला भाय।
बेरा डरकत संझौती समय,
ठेला लागावय मनिहारी।
बेटी बहू टिकली फूंदरी बर,
सकलागे सब पनिहारी।
अईसन मेला भराथे संगी,
मोर बरगा गांव मा रोज।
दया मया के निरमल छांव,
आजाते गा मोर गांव सोज।
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रचना@ श्रवण साहू
गांव-बरगा जि. बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा-08085104647
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