मंगलवार, 25 अगस्त 2015

गज़ल - श्रवण साहू

                 गज़ल

सुख की चाह रख,चलते-चलते हम,
जीवन के कठिन मोड़ से निकला था।

मची थी हलचल शायद कुंडली में मेंरे,
शनि के हाथों की मरोड़ से निकला था।

आवाक सा हो गया था पूरी डगर में,
छुके गुजरी मौत ऐसे रोड से निकला था।

रोता और बिलखता रहा मैं उम्र भर,
अपनी मंजिल जो छोड़ के निकला था।

गुस्ताखी यह था मेरा सुख के खातिर,
प्रकृति के नियम को तोड़ के निकला था।
                     
                        ✏ श्रवण साहू

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