!! फुलकईना !!
मया के डोरी मा बाँध के,
धरधर मोला रोवाये!
बिलख बिलख मन रोये,
आँखी ले आंसु बोहाये!
सहावत नईहे अब पीरा हा,
अऊ कतका धीर धराबे।
सुसक सुसक के दिल रोये,
मोर तो चेत हरागे।
तोला देखेबर नयन तरसत हे,
मोर मन होगे उदास।
तोर अगोरा मा रस्ता देखत,
जीव मोर होगे हदास।
आजा रे मोर फुलकईना तै,
मोला जादा झन रोवा।
मोर जिनगी मा गढ़दे फुल
काँटा झन वो बोंवा।
तोर बिन मोर जिनगी के,
नईहे कोनो थिरभाव।
मोर जिनगी मा फुल खिलाके,
करदे मया के छाँव।
करदे मया के छाँव।
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रचना@ श्रवण साहू
गांव - बरगा जि. बेमेतरा (छ. ग.)
मोबा.-+918085104647
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