रविवार, 2 अगस्त 2015

एक विरह गाथा छत्तीसगढ़िया का - श्रवण साहू

।।। एक विरह गाथा ।।।
              - एक छत्तीसगढ़िया

सूदूर प्रदेश से आया था,
बेसहारा एक मेहमान।
बेघर, अपरिचित थे मगर,
मैने दिया उसे सम्मान।

पहनने को कपड़ा दिया,
खाने को दिया रोटी।
कोना घर का रहने को,
दिया काम था छोटी।

खेत जाता साथ मेरे,
हाथ संग मे बटाता।
बन गया दिनचर्या यही,
अजीब सा हो गया नाता।

दर्जा दे बैठा भी मैने,
उसे बना दिया हकदार।
मै तो अनपढ़ था मगर,
वो सातिर, समझदार।

ऐसा हूआ अब मेरे घर में,
उसका चलता राज।
मै मजदूर सा लगता अब,
वो बन गये महाराज।

मै बुढ़ा हो गया था,
उसका था जवानी
ये कैसा दिन आ गया,
करता वह मनमानी,

मेरे ही घर,मै गुलाम
आदेश वही चलाता।
असमर्थ देंह मेरा था
कितना और कमाता।

अब अत्याचारी बन,
मुझे बहूत सताता,
अहसान भुल गया अब,
उसे रहम न आता।

क्या कर सकता था,
हो गया था मै लाचार,
बेसहारा बेघर कर दिये,
करके वह अत्याचार।

कौन था मैं? कौन मेहमान?
मैं छत्तीसगढ़िया,।
परदेशिया मेहमान।
कटू लगे मगर सत्य यही
देख लो अभी वर्तमान।

रचना-श्रवण साहू
गांव-बरगा थानखम्हरिया
मोबा. 08085104647

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