मंगलवार, 1 सितंबर 2015

छत्तीसगढ़ी कहानी (बेजुबान) - श्रवण साहू

                 बेजुबान
                             लेखक- श्रवण साहू
                
तीजा पोरा के सुघ्घर मनभावन परब रहीस, फुफु दीदी, पूर्णिमा बहिनी, रुखमनी दीदी, उत्तरा दीदी सबो झन के आये ले घर हा भरे भरे लगत रहीस।  रोज के दीदी मन के संग मा तिरी पासा,सांप सीढ़ी,बिल्लस अऊ गोंटा खेलई हा तो  हमर सबो झन के दिनचर्या बनगे रहीस अऊ अईसनहा समे हा साल के सबले सुखद दिन रहिस।शेरु हा तो मोर नान्हे-नान्हे भांचा भांची नमन अऊ शिखा के सबले बड़े संगवारी बनगे रहिस,वो मन हमन ला तो भाबे नई करय,  लागे रहय शेरू ला खेलई मा।  शेरु अऊ कोनो नई बल्कि  हमर पोंसे कुतिया बबली के लईका हरय। हमर डोकरी दाई के छोड़ सब झन वोला मया करय। शेरू ला सब झन नान्हे लईका सरिक मया करय अऊ सेरू तको हा अपन नियम कायदा मा राहय अऊ अपन सीमा  अंगना ले परछी मा घलो नई चढ़त रहिस।
                                     एकदिन मंझनिया कन फुफु दीदी भर घर मा राहय अऊ लईका सियान जम्मो झन नरवा मा नहाय बर चलदे रहय,  मैं हा बियारा मा लकड़ी चिरत रहेंव अचानक मोला सेरू के भूंके के आवाज आईस थोरकुन देर बाद मा ओकर रोय के आवाज आईस मैं लकर धकर दौंड़त घर गेंव,  सेरु हा अंगना मा डलगे रहीस अऊ फुफु दीदी डंडा मा सेरू ला पिटत रहय,चाह के भी मोर मुंह ले भाखा नई निकलत रहय काबर कि मोर फुफु दीदी थोरकिन बात मा रिसाजथे अऊ दू चार ठन सुना के घर ले भाग जथे। ठऊका बेरा मा सबो झन नहाके घलो आगे अऊ उत्तरा दीदी हा फुफु दीदी के हाथ ले डंडा ला झटक के गुस्साये स्वर मा पूछिस- " का होगे दीदी सेरू हा का गलती करे हे?  तेमा ओला निरदयी बरोबर मारत हस।"
फुफु दीदी-" उत्तरा तैं कुछु बात ला नई जानस कले चुप राहा"
उत्तरा दीदी-"ता का होगे बताबे तभे तो जानबो वो।"
फुफु दीदी-"ये सरवन टूरा ला पूछ ना का होगे तेला"
  (उत्तरा दीदी हा लाल आंखी ले मोर डाहर देखिस)
मैं -"मै कुछू बात ला नई जानव दीदी मैहा बियारा मा लकड़ी चिरत रहेंव ता सेरु के आवाज सुनेव ता दौरत आयेंव ता दीदी हा सेरू ला पिटत रहीस,(अतके कहिके मैं चुप होगेंव।)
फुफु- " मैं हा माई कुरिया मा बईठके चाउंर निमेरत रहेंव ता अचानक देखेंव ये सेरु हा भुंकत भुंकत परछी मा चढ़गे रहिस ता मैं येला येकर गलती के सजा देहंव।
(अतका ला सुन के सब झन चुप होगे, उत्तरा दीदी कपड़ा ला सुखोय बर धर लिस, फुफु हा चांउर निमेरे बर धरलिस महू बियारा जात रहेंव फेर मोर मन माढ़त नई रहिस मैं पूर्णिमा ले एक गिलास पानी मांगेव।
                पूर्णिमा जईसे ही रंधनी खोली मा गिस जोर से चिल्लाईस।सबो झन के नजर रंधनी खोली डाहर होगे ऊंहा ले एकठन बिलई निकलिस जेन हा सब भात,  दुध,  रोटी मन ला चट कर डारे राहय अऊ बचत ला गिरा दे राहय। ईही बिलई ला भगाय अऊ जनाय बर सेरू हा परछी मा चढ़े रहीस।
                                ( सबो झन हा गुस्सा के भाव ले फुफु दीदी ला देखत रहीस,  अऊ फुफु दीदी के नजर हा घलो झुकगे रहिस अऊ ऊहू ला अपन गलती के अहसास होगे रहिस अब फुफु तको हा सेरू ले मया करे लागिस।)
              ओखर बिहान दिन संझौती बेरा रूखमनी दीदी, पूर्णिमा बहिनी अऊ डोकरी दाई तीनो झन कोठार बरबट्टी अऊ भाजी टोरे बर जात रहीस उंकर संग मा जाय बर नान्हे-नान्हे नमन अऊ शिखा घलो रोय बर धरलिस, हार खाके डोकरी दाई दूनो झन ला दोनो झन ला दूनो हाथ मा पा लिस, उंकर पाछु-पाछु सेरू तको हा कोठार चल दिस। कोठार मा कांदी कचरा के मारे रद्-बद् लागत रहिस  दूनो झन लईका मन ला डोकरी दाई हा रूंख के नीचे मा बईठार के चेतईस - " कोठार मा रद्-बद् के मारे किरा मकोरा होही  तुमन ये मेर ले टरहू झन। लईका मन ला चेताय के बाद मा तीनो झन बरबट्टी टोरे बर धर लिस।
                                   थोरिक बाद नमन के आंखी मा एक ठन फांफा दिख गे वोहा ओला पकड़े खातिर कांदी के बीच रद्-बद मा खुसर जथे वोकर पाछु सेरू तको चल देथे फांफा तो उड़ा जथे फेर ये का?  नमन के पांव मा डोमी सांप के पूछी हा खुंदा जथे,  सांप हा गुस्साके फन कांड़ लेथे अउ अबक-तबक नमन ला काटने वाला रहिथे तईसे मा सेरू हा सांप अऊ नमन के बीच मा आके सांप के मुड़ीच ला अपन मुंह मा दबा के सांप ला मार डरथे अऊ भुंके बर धर लेथे सबो झन हा सेरू मेर आके सकला जथे रूखमनी हा धरा-रपटा नमन ला उठाथे।  सेरू के मुंह मा सांप ला देखके सब झन अकबका जथे। अचानक सेरू हा भुंईया मा घोलंड जथे अऊ रोय बर धर लेथे।  पूर्णिमा हा दौड़त मोला बताय खातिर घर आईस, महूं हा बात ला सुनत साट दौंड़त कोठार गेंव, जाके देखेंव ता  डोकरी दाई अऊ रुखमनी दीदी दूनो झन के आंखी ले आंसू के धार बोहावत हे, सेरू हा मुरछा खाय धरती मा परे हे ओकर मुंह मा खुन हे वोकर जीभ मा सांप दंश के चिनहा हे अऊ ओकर आगु मा सांप हा मरे परे,  देखते ही मै अपन आप ला नई रोक पायेंव सेरू ले लपट के रोय बर धरलेंव मोर आंखी ले आंसु गिरे लागिस, देखते-देखत घर के सबो झन सकलागे।  सब के आंखी ले आंखी ले आंसु बहिगे।  सबले जादा रुखमनी दीदी रोवत रहिस अऊ सब ला बताईस कि आज ये सेरू हा मोर बेटा नमन के खातिर अपन जान गंवादिस आज हम सबो झन सेरू के कर्जदार हन रिनी हन अऊ सेरू के करजा ला छूटना हमर बर असम्भव हे,  अतका ला सुन के सबो झन हा सेरू ले लिपट के अऊ जादा रोय बर धरलिस अऊ सहीं मा हमन ला अपन आप मा बहुत दुख लागीस,  काबर की आज हमन ओ बेजुबान के कर्जदार हन जेला छूटना ये जनम छूटना हंथेरी मा सरसो उगाय के समान हे।
             । जय जोहार जय छत्तीसगढ़।

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