शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

मातृभाषा हिन्दी - कुंडलियॉ

                 ।। कुंडलियॉ ।।
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सोहे मस्तक जगमग ,भारत माँ की बिन्दी
अनुपम अलौकिक सुगम,राष्ट्र भाषा हिन्दी।
राष्ट्र भाषा हिन्दी, भारत की अमिट शान,
मुस्लिम सिक्ख ईशाई, हंसतें करते गान।
देववाणी-संस्कृत तनुजा,मन सबकी मोहे,
काव्य-सागर-अलंकार, मोती सरिस सोहे।
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वर्ण-वर्ण प्रति वर्ण में, हैं अद्वितीय सी भेद,
पुराण, शास्त्र,महाकाव्य, देवनागरी से वेद।
देवनागरी से वेद, सुनत भवपार लग जाये,
नेति-नेति कह धर्मानुरागी,गुण सर्वदा गाये।
मातृभाषा गुणगान सुन तृप्त भये मम कर्ण,
सुमधुर अपरिवर्तनीय, हिन्दी की हर वर्ण।
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तन से हम स्वतंत्र भले,वचन बन्धता खाय,
अंग्रेज़ी पराधीन बन्दे, हिन्दी बोलत लजाय।
हिन्दी बोलत लजाय,बन गये शत्रु के दास,
साहब बन गये भले, मानव बने नहि खास।
मुख से अंग्रेजी सबके,'श्रवण' कर रोये मन,
पढ़त सुनत हिन्दी जबहि,नाचत सबकै तन।
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रचना-श्रवण साहू
गांव-बरगा जि-बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा.+918085104647

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