नज़र क्या पड़ी कागज़ पे,
सोंचा कुछ खास़ लिख दूँ।
मेरे सनम् तूझे सुलताना,
खुद को तेरा दास लिख दूँ।
ऋतु बसन्ती के वियोग में,
पतझड़ सी लिबास़ लिख दूँ।
पल-पल,छण-छण बिताया,
वो हर लम्हा उदास लिख दूँ।
तड़पता मैं बिन तेरे प्रियतमा,
खुद को जिन्दा लास लिख दूँ।
कलम की टुकड़ा मैं मिट्टी की,
तूझे आज़ाद आगास लिख दूँ।
मैं-तेरी तुम-मेरी ऐ-सनम्,
बस इतना सा विश्वास लिख दूँ।
रचना-श्रवण साहू
गांव-बरगा जि.-बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा.- +918085104647
बुधवार, 16 सितंबर 2015
गज़ल - श्रवण साहू
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