. अरि सखी!
करती ठिठोली मिल सब सहेलियाँ,
अरि सखी! अब तो बुझो पहेंलियाँ।
शर्माना छोड़ पगली सीधी तु बता,
तरूणमयी! तुझे रहा कौन सता,
किसकी तूम बन बैठी सजनियाँ।
अरि सखी!......
नजरों में झुलते शायद तेरे वें कुंवर,
शांत हो तु लगाती ध्यान हर प्रहर,
नाम अब सुझा,न कर अठखेलियाँ।
अरि सखी!......
किसकी कान्ता प्रियसी वल्लभा,
लावण्यमयी!किसकी तू सुलभा,
सांवरी कौन हैं तेरी सांवरियाँ।
अरि सखी!.....
कौन तुम्हारे प्रियवर हे रमनी,
किसकी तुम रागिनी प्रणयिनी,
बता भी दे किसकी तू जोगनियाँ
अरि सखी!....
रचना - श्रवण साहू
गांव-बरगा जि.-बेमेतरा
मोबा.-+918085104647
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