गुरुवार, 3 सितंबर 2015

जन्माष्टमी कविता - by/ shravan sahu

    जन्माष्टमी प्रार्थना
                 
दुनिया के पाप मिटाय बर,
  तैं अऊ आजा पापहारी।
दूखिया के दुख हटाय बर,
  तैं अऊ आजा बनवारी।

कलपत हे तोर गौ माता हा,
  नईहे कोनो हा सुनईया।
परिया घलो ला मनखे खागे,
गईया बर नईहे गुनईया।
सुरहिन ला बंशी सुनाय बर,
  तैं अऊ आजा बंशीधारी।

जन्मे कतेक दुर्योधन दुशासन
   दुरपति के चिर हरईया।
रोवत बिलखत हे नारी बिचारी
  आंसु के नईहे पोंछईया।
अबला के लाज बचाय बर,
   तैं अऊ आजा दुखहारी।

भ्रष्टाचार बदरा बन बरसत अऊ
  महंगाई के गरेरा छावत हे।
ब्राम्हण गोप ग्वाल जम्मो झन
भारी दुख ला अब पावत हे।
बिपदा मा गोवर्धन उठाय बर,
   तैं अऊ आजा गिरधारी।

अत्याचारी कालिया नाग बने,
नर नारी ला आज सतावत हे।
साधु सज्जन ला विपत परगे,
  जेन तोरे गुन ला गावत हे।
  संताप के दही चोराय बर,
    तै अऊ आजा कन्हाई।

               रचना
            श्रवण साहू
    गांव-बरगा,जि.-बेमेतरा

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