तूमसे हमारी कैसी ये दूरी हैं,
कुछ मेरी, कुछ तेरी मजबूरी हैं।
तड़पाती बहुत है इंतज़ार तेरी
अधर सा मैं, जीवन भी अधूरी हैं।
हरपल मुस्कुराओ अच्छा है पर
थोड़ा तो रूठो ये भी तो जरूरी हैं।
दस्तूर समझना गर बिछड जायें
मिलें तो समझ,उनकी ही मंजूरी हैं।
अल्फाज़ सजाना बस में नही,मगर
नाम जो आये तेरी,गज़ल पूरी हैं।
रचना-श्रवण साहू
बरगा , बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा.~ 8085104647
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